सुनो!
है खबर ये मार्च 26 की,
कोई पुरानी नही
है ये इसी साल 20 की
complete lockdown वाले
सरकारी हुक्म के just बाद की।
social media से पता चला कि
नील गाय घूम रही है
नोएडा की सड़कों पर
और बारहसिंघा हिरण
हरिद्वार की सड़कों पर
दिल्ली जैसी जगहों पर भी
नीला और साफ आसमान है
हवा पहले से कहीं साफ
और सड़कें खाली सुनसान है।
social animal,
जिसे cultured way में इंसान कहते हैं,
घरों में कैद है
और animal, जिसका character जैसे पशुता और मवेशिपना इंसानों में ज्यादा देखने को मिलता है,
सड़कों पर आजाद है
यहाँ तक की picture अनूठी है
'घर मे रहो' नारा ही आबाद है।
फ्लैट नुमा पिंजरों में कैद होने को
इंसान आज लाचार है
क्योंकि देश में
कोरोना नाम की महामारी
chinese सामान की तरह
पैर पसारने को बेकाबू है।
लेकिन सड़को पर जानवर कम हैं
ये तो वो जानवर हैं जो जंगलों या खेतो से
शहर में घुस आए हैं मौका पाकर
जैसे इंसान घुस जाता है किसी शहर में
जिंदगी की तलाश में अपने गांव से आकर।
लेकिन गांव से क्या सिर्फ इंसान ही आते हैं?
पशु नही?
फिर मार्च 28 को देश की राजधानी में
सड़कों पर भीड़ जमा हो जाती है
कर्फ्यू के बाबजूद।
इंसानों जैसी दिखने वाली ये भीड़
वास्तव में पशुओं का ही झुंड है
जिसे खदेड़ दिया गया है
उनके पालन कर्ताओं द्वारा
या राजनैतिक रहनुमाओं द्वारा।
concrete के जंगल में
पैदावार बंद है।
शायद मेरा इंसान को पशु कह देना
तुम्हारे दिल पर चोट कर दे,
sympathy वाले तुम्हारे होंठो पर
गुस्से के गुब्बार भर दे,
तब तुम कह उठो-
बड़ा जाहिल आदमी है, totally insesitive ।
मैं तो फिर भी ये ही कहूंगा-
यथार्थ तो कड़वा होता ही है।
यथार्थ यही है कि बरेली में
प्रशासन केमिकल के फुहारों में
इस भीड़ को नहला देता है
बिल्कुल पशुओं की तरह,
सड़क पर बिठा कर।
याद रखें कि अभी की खबर है
ऑस्ट्रेलिया ने हज़ारो ऊँट मार दिये
क्योंकि,
साले ऊंट इंसानो के हिस्से का पानी पी रहे थे।