Sunday, November 10, 2019

स्वप्न-मिलन

वो निशा का स्वप्न जिसमें,
रौशनी के रू-ब-रू तुम।
कान में आ कह रहीं थीं,
मैं भ्रमर और तुम कुसुम।

मैं जगा था, तुम जगे थे,
और जगी थी ज्योतियाँ।
प्रेम की दीवार पर, बनी
कितनी ही परछाईयाँ।

तुमने मेरी उँगलियों में,
उंगलीं अपनी फांसकर।
प्यार अधरों से लिखा था,
क्या गजब अधिकार कर।
  
              ---Rahul Rajput

सम्भालो हुस्न को अपने...

  सम्भालो हुस्न को अपने कहीं ज्यादा न हो जाए भला चंगा दिल-ए-नादां न यों आवारा हो जाए  नहीं मिला अगर मुझको तब भी कोई गिला नहीं चलो किस्मत अजम...