Wednesday, November 26, 2014

उसकी खातिर न सही, पर मेरी खातिर

पता है
तुम्हारे और मेरे दरमियाँ बस इतना सा फासला है
कि जब भी रातो को मुझे तुमसे मिलने का मन करता है
तो धीरे से ये बात मैं चाँद के कानों में फूक देता हूँ
वो तनिक सा सिर घुमा के तुम्हारी खिड़की में झांकता है
और तुम्हारी मुस्कानों के सारे राज मुझे बता देता है

पता है
कल रात चाँद ने मुझसे तुम्हारी शिकायत की है 
कि तुमने किस बेरहमी से सर्दी का बहाना बना के खिड़की बंद कर ली
वो तुम्हारी खिड़की की ग्रिल पकड़ के खड़ा था, 
तुमने ध्यान नहीं दिया ?
आया था वो सूजी ऊँगली और गीली आँखें लेकर पास मेरे

पता है
वो नाराज है, पर मैंने उसे मना लिया दो चॉकलेट देकर
आएगा  आज भी वो तुम्हारी खिड़की पर मेरी खातिर
अगर हाथो में चोट की वजह से न दे पाये वो दस्तक 
तो तुम सुन लेना उसके दबे कदमो की आहट 
और खोल देना खिड़की
उसकी खातिर न सही, पर मेरी खातिर...

सम्भालो हुस्न को अपने...

  सम्भालो हुस्न को अपने कहीं ज्यादा न हो जाए भला चंगा दिल-ए-नादां न यों आवारा हो जाए  नहीं मिला अगर मुझको तब भी कोई गिला नहीं चलो किस्मत अजम...